जय हिन्द वन्देमातरम

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मंगलवार, 19 अक्तूबर 2010

कफन

हिंदी साहित्य के लेखकों में प्रमुख लेखक है मुंशी प्रेमचंद. कुछ दिन पहले उनकी एक कहानी पढने का मौका मिला.यह  कहानी हमने अपने अध्ययन काल में भी पढ़ी थी . कहानी का शीर्षक है "कफन ". वैसे तो मैंने मुंशी जी की कई कहानियाँ पढ़ी है .(कफन ,गबन. गोदान ,पूस की रात आदि ). प्रेमचंदजी जितने जमीन से जुड़े हुए लेखक थे और उनकी लेखनी में जितनी यथार्तता स्पस्ट होती है वैसा मैंने किसी और लेखक में महसूस नहीं किया है . उनकी कहानी मानव अंतर्मन को अंदर तक झकझोर जाती है. उन्होंने निम्न वर्गीय समाज की मजबूरी ,गरीबी और उनसे उत्पन्न  निम्न मानसिकता का सजीव चित्रण किया है . इनकी कहानिया पढ़ने के बाद हम  ये सोचने पर मजबूर हो जाते है कि क्या  इंसान इतना हद तक गिर सकता है?
कफन कहानी में भी उन्होंने शराबी बाप बेटे कि निम्न मानसिकता को उजागर किया है.जिसके माध्यम से उन्होंने यह सन्देश दिया है कि शराबी व्यक्ति शायद किसी का भी अपना नहीं होता है. इस कहानी में बेटा अपनी स्त्री कि दर्द भरी चीत्कार सुनकर भी उसके पास सिर्फ इसलिए नहीं जाता है कि कहीं उसका बाप भूने हुए आलू को पूरा साफ न कर जाये. अपनी स्त्री के मरने के बाद उसके कफ़न के पैसे को भी शराबी बाप बेटे शराब पी कर और अपने मनपसंद व्यंजन खा कर उड़ा देते है , साथ ही  जो खाना बच जाता है उसे एक भिखारी को देकर दानी होने के गर्व को पहले वार महसूस करते है. वे अपने मरे हुए जमीर को यह कहकर झूठी तसल्ली देते है कि जो स्त्री जिन्दा रह उनकी  क्षुधा तृप्ति  आखिरी साँस तक करती रही वो मरकर भी उनके अधूरे सपने को  पूरा कर गई .उसकी कफ़न के पैसो को उड़ाने के बाद उसकी आत्मा की शांति के लिए  प्रार्थना भी करते है.
आपको क्या लगता है वर्तमान परिपेक्ष्य में  बाप- बेटे आत्मा की शांति की प्रार्थना भी करेंगे ?

1 टिप्पणी:

M VERMA ने कहा…

प्रेमचन्द ने जिन किरदारों का 'कफन' में चयन किया है वे परिवेश और हालात बदलकर आज भी जिन्दा हैं.