जय हिन्द वन्देमातरम

जय हिन्द   वन्देमातरम

शनिवार, 4 जून 2011

इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है




इस नदी की धार में ठंडी हवा आती तो है,
नाव जर्जर ही सही, लहरों से टकराती तो है।
एक चिनगारी कही से ढूँढ लाओ दोस्तों,
इस दिए में तेल से भीगी हुई बाती तो है।
एक खंडहर के हृदय-सी, एक जंगली फूल-सी,
आदमी की पीर गूंगी ही सही, गाती तो है।
एक चादर साँझ ने सारे नगर पर डाल दी,
यह अंधेरे की सड़क उस भोर तक जाती तो है।
निर्वचन मैदान में लेटी हुई है जो नदी,
पत्थरों से, ओट में जा-जाके बतियाती तो है।
दुख नहीं कोई कि अब उपलब्धियों के नाम पर,
और कुछ हो या न हो, आकाश-सी छाती तो है।
दुष्यंत कुमार 

4 टिप्‍पणियां:

Vivek Jain ने कहा…

बहुत सुंदर अहसासों को प्रस्तुत करती हैं ये पंक्तियाँ, प्रस्तुति भी बहुत खूबसूरत है,
विवेक जैन vivj2000.blogspot.com

virendra sharma ने कहा…

यहाँ दरख्तों के साए में धूप लगती है ,
चलो यहाँ से चलें और उम्र भर के लिए ।
इस नदी की धार सुनवा कर आपने मन मोह लिया .बहुत अच्छा चयन है "साए में धूप से ".

महेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा…

दुष्यंत कुमार को कितनी बार पढ लीजिए, लगता है पहली बार पढ रहे हैं।

Unknown ने कहा…

दु‍ष्‍यंत जी की अच्‍छी कविता साझा करने का धन्‍यवाद.