बात उन दिनों की है जब में मुंबई में नई-नई आई थी और यहाँ की दौर भाग वाली दिनचर्या से एकदम अनजान थी . वैसे तो बचपन में मैंने मुंबई दर्शन की बस से मुंबई दर्शन किया था परन्तु वह तो सिर्फ दर्शन तक सीमित था और यकीन कीजिये मुंबई दर्शन की बस दर्शन ही कराती है . अतः दूसरी बार मुंबई आने के बाद एक बार फिर से मुंबई को देखने की जिज्ञासा होना लाज़मी था
तो फिर बस देर किस बात की थी ,एक बार रविवार की सुबह निकल पड़ी गेट वे आफ इंडिया देखने वो भी मुंबई की लाइफ लाइन कही जाने वाली लोकल ट्रेन में . जाते समय तो सब कुछ ठीक रहा पर लौटने के समय शाम हो चुकी थी और लोकल ट्रेन खचा-खच भरी हुई थी जो की शायद मुंबई वालों के लिए आम बात हो पर मेरे लिए एक नया अनुभव था . अनुभव के साथ साथ इससे सफर करना चुनौती भी थी .
हुआ यूँ कि हमारा स्टेशन आते आते भीड़ इतनी हो चुकी थी कि उतरने वाले उतरने को बेताब थे पर चढ़ने वाले उनको विदा करने को तैयार ही नहीं थे . मैं इस तरह के अनुभव से पहली वार गुजर रही थी और मैंने यह बिलकुल नहीं सोचा था की लोकल ट्रेन की यात्रा इतनी संघर्ष पूर्ण होगी . क्या हुआ की घरवाले तो उतर चुके थे और मैं स्थिति अनुकूल होने की प्रतीक्षा करती रही और ट्रेन चलने लगी फिर किसी तरह मेरे परिवार के लोगों ने मुझे खींच-खांच कर उतार ही लिया .और वह संघर्षपूर्ण यात्रा समाप्त हो ही गई . उसके बाद तो मैंने लोकल ट्रेन से यात्रा न करने का मौन शपथ ग्रहण कर ही लिया था पर मुंबई में रहकर मुंबई की लाइफ लाइन से दूर रहना नामुमकिन ही है आज भी कभी कभी वो स्थितिया हो ही जाती है की लोकल ट्रेन की यात्रा करनी पर ही जाती है . सच मानिये मुंबई के आसपास की जगह को देखने की इच्छा होते हुए भी मैं सिर्फ इसी कारण से वहां नहीं जा पाती हूँ क्योकी आम लोगों की नजरो में लोकल ट्रेन दूर की यात्रा के सफ़र का सुविधा जनक माध्यम है . हमारे पाठको में कई ऐसे व्यक्ति होंगे जो रोज़ लोकल ट्रेन से सफ़र करते होंगे उन्हें मेरी ये बाते शायद अतिश्योक्ति लगे परन्तु काफी दिन मुंबई में रहने के बाबजूद भी आज तक मुंबई की लाइफ लाइन से आज तक नहीं जुड़ पाई हूँ ...
शायद मेरे अन्दर ही इस तरह की स्थिति से जूझने की शक्ति न हो क्योंकि लाखो लोग रोज़ लोकल ट्रेन के द्वारा अपना सफ़र तय करते है और ये उनकी जिन्दगी का हिस्सा बन चूका है .............
आपको क्या लगता है सचमुच हम जैसे लोग इस तरह की संघर्ष पूर्ण स्थिति से बचना चाहते है या फिर
लोकल ट्रेन की यात्रा को थोरा सुविधाजनक बनाया जा सकता है .
1 टिप्पणी:
मजबूरी सब करवाती है. एक लम्बे समय तक हम भी इससे जूझे हैं. निश्चित ही प्रयास तो जारी है वो नई नई (नाम नहीं याद आ रहा) ट्रेने चला कर कि ट्रेफिक कुछ कम हो लेकिन जनसंख्या भी तो नित बढ़ती जाती है मुम्बई की.
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