tag:blogger.com,1999:blog-3220247770545826301.post8878034060578659137..comments2023-10-22T18:40:44.017+05:30Comments on राहें जो अनजानी सी थी: वो मूक आग्रहरेखाhttp://www.blogger.com/profile/14478066438617658073noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-3220247770545826301.post-36043701664645266142010-08-02T19:54:21.650+05:302010-08-02T19:54:21.650+05:30"क्या मेरे अन्दर इतनी भी इंसानियत नहीं बची थी..."क्या मेरे अन्दर इतनी भी इंसानियत नहीं बची थी कि उसके मूक आग्रह को समझ पाती?"<br /><br />इंसानियत बेचारी! <br /><br />अगर हमारे अन्दर है तो हमें बहुत मौके मिलते हैं - उसे दिखने के - इसलिए विश्वास है कि आपको भी मिलेंगे.<br /><br />सोच को शब्द देने का सार्थक प्रयास - अच्छा आलेखAnonymousnoreply@blogger.com